अथ चौरासी सिद्ध चालीसा: शक्ति, भक्ति और सिद्धि का मार्ग
परिचय
नमस्कार दोस्तों! क्या आप आध्यात्मिक विकास और अलौकिक शक्तियों की प्राप्ति की कामना रखते हैं? यदि हाँ, तो अथ चौरासी सिद्ध चालीसा आपके मार्ग पर एक अद्भुत और शक्तिशाली साथी बन सकता है। आज के इस ब्लॉग में, हम चौरासी सिद्धों की महिमा, इस पवित्र चालीसा का महत्व, तथा इसके पाठ से मिलने वाले लाभों पर गहराई से चर्चा करेंगे।
अथ चौरासी सिद्ध चालीसा क्या है? अथ चौरासी सिद्ध चालीसा 84 सिद्धों (पूर्ण योगियों) की स्तुति करने वाला एक हिंदी भक्ति गीत है। नाथ परंपरा में इन 84 सिद्धों का विशेष स्थान है। ऐसा माना जाता है कि इन सिद्धों ने अद्भुत योगिक शक्तियां और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था। चौरासी सिद्ध चालीसा उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने व उनकी कृपा पाने का माध्यम है।
अथ चौरासी सिद्ध चालीसा
दोहा –
श्री गुरु गणनायक सिमर,
शारदा का आधार ।कहूँ सुयश श्रीनाथ का,
निज मति के अनुसार ।
श्री गुरु गोरक्षनाथ के चरणों में आदेश ।
जिनके योग प्रताप को ,
जाने सकल नरेश ।
चौपाई
जय श्रीनाथ निरंजन स्वामी,
घट घट के तुम अन्तर्यामी ।
दीन दयालु दया के सागर,
सप्तद्वीप नवखण्ड उजागर ।
आदि पुरुष अद्वैत निरंजन,
निर्विकल्प निर्भय दुःख भंजन ।
अजर अमर अविचल अविनाशी,
ऋद्धि सिद्धि चरणों की दासी ।
बाल यती ज्ञानी सुखकारी,
श्री गुरुनाथ परम हितकारी ।
रूप अनेक जगत में धारे,
भगत जनों के संकट टारे ।
सुमिरण चौरंगी जब कीन्हा,
हुये प्रसन्न अमर पद दीन्हा ।
सिद्धों के सिरताज मनावो,
नव नाथों के नाथ कहावो ।
जिनका नाम लिये भव जाल,
आवागमन मिटे तत्काल ।
आदि नाथ मत्स्येन्द्र पीर,
घोरम नाथ धुन्धली वीर ।
कपिल मुनि चर्पट कण्डेरी,
नीम नाथ पारस चंगेरी ।
परशुराम जमदग्नी नन्दन,
रावण मार राम रघुनन्दन ।
कंसादिक असुरन दलहारी,
वासुदेव अर्जुन धनुधारी ।
अचलेश्वर लक्ष्मण बल बीर,
बलदाई हलधर यदुवीर ।
सारंग नाथ पीर सरसाई,
तुङ़्गनाथ बद्री बलदाई ।
भूतनाथ धारीपा गोरा,
बटुकनाथ भैरो बल जोरा ।
वामदेव गौतम गंगाई,
गंगनाथ घोरी समझाई ।
रतन नाथ रण जीतन हारा,
यवन जीत काबुल कन्धारा ।
नाग नाथ नाहर रमताई,
बनखंडी सागर नन्दाई ।
बंकनाथ कंथड़ सिद्ध रावल,
कानीपा निरीपा चन्द्रावल ।
गोपीचन्द भर्तृहरी भूप,
साधे योग लखे निज रूप ।
खेचर भूचर बाल गुन्दाई,
धर्म नाथ कपली कनकाई ।
सिद्धनाथ सोमेश्वर चण्डी,
भुसकाई सुन्दर बहुदण्डी ।
अजयपाल शुकदेव व्यास,
नासकेतु नारद सुख रास ।
सनत्कुमार भरत नहीं निंद्रा,
सनकादिक शारद सुर इन्द्रा ।
भंवरनाथ आदि सिद्ध बाला,
ज्यवन नाथ माणिक मतवाला ।
सिद्ध गरीब चंचल चन्दराई,
नीमनाथ आगर अमराई ।
त्रिपुरारी त्र्यम्बक दुःख भंजन,
मंजुनाथ सेवक मन रंजन ।
भावनाथ भरम भयहारी,
उदयनाथ मंगल सुखकारी ।
सिद्ध जालन्धर मूंगी पावे,
जाकी गति मति लखी न जावे ।
ओघड़देव कुबेर भण्डारी,
सहजई सिद्धनाथ केदारी ।
कोटि अनन्त योगेश्वर राजा,
छोड़े भोग योग के काजा ।
योग युक्ति करके भरपूर,
मोह माया से हो गये दूर ।
योग युक्ति कर कुन्ती माई,
पैदा किये पांचों बलदाई ।
धर्म अवतार युधिष्ठिर देवा,
अर्जुन भीम नकुल सहदेवा ।
योग युक्ति पार्थ हिय धारा,
दुर्योधन दल सहित संहारा ।
योग युक्ति पंचाली जानी,
दुःशासन से यह प्रण ठानी ।
पावूं रक्त न जब लग तेरा,
खुला रहे यह सीस मेरा ।
योग युक्ति सीता उद्धारी,
दशकन्धर से गिरा उच्चारी ।
पापी तेरा वंश मिटाऊं,
स्वर्ण लङ़्क विध्वंस कराऊँ ।
श्री रामचन्द्र को यश दिलाऊँ,
तो मैं सीता सती कहाऊँं ।
योग युक्ति अनुसूया कीनों,
त्रिभुवन नाथ साथ रस भीनों ।
देवदत्त अवधूत निरंजन,
प्रगट भये आप जग वन्दन ।
योग युक्ति मैनावती कीन्ही,
उत्तम गति पुत्र को दीनी ।
योग युक्ति की बंछल मातू,
गूंगा जाने जगत विख्यातू ।
योग युक्ति मीरा ने पाई,
गढ़ चित्तौड़ में फिरी दुहाई ।
योग युक्ति अहिल्या जानी,
तीन लोक में चली कहानी ।
सावित्री सरसुती भवानी,
पारबती शङ़्कर सनमानी ।
सिंह भवानी मनसा माई,
भद्र कालिका सहजा बाई ।
कामरू देश कामाक्षा योगन,
दक्षिण में तुलजा रस भोगन ।
उत्तर देश शारदा रानी,
पूरब में पाटन जग मानी ।
पश्चिम में हिंगलाज विराजे,
भैरव नाद शंखध्वनि बाजे ।
नव कोटिक दुर्गा महारानी,
रूप अनेक वेद नहिं जानी ।
काल रूप धर दैत्य संहारे,
रक्त बीज रण खेत पछारे ।
मैं योगन जग उत्पति करती,
पालन करती संहृति करती ।
जती सती की रक्षा करनी,
मार दुष्ट दल खप्पर भरनी ।
मैं श्रीनाथ निरंजन दासी,
जिनको ध्यावे सिद्ध चौरासी ।
योग युक्ति विरचे ब्रह्मण्डा,
*योग युक्ति थापे नवखण्डा ।
योग युक्ति तप तपें महेशा,
*योग युक्ति धर धरे हैं शेषा ।
योग युक्ति विष्णू तन धारे,
*योग युक्ति असुरन दल मारे ।
योग युक्ति गजआनन जाने,
आदि देव तिरलोकी माने ।
*योग युक्ति करके बलवान,
योग युक्ति करके बुद्धिमान ।
योग युक्ति कर पावे राज,
*योग युक्ति कर सुधरे काज ।
योग युक्ति योगीश्वर जाने,
जनकादिक सनकादिक माने ।
योग युक्ति मुक्ती का द्वारा,
*योग युक्ति बिन नहिं निस्तारा ।
योग युक्ति जाके मन भावे,
ताकी महिमा कही न जावे ।
जो नर पढ़े सिद्ध चालीसा,
आदर करें देव तेंतीसा ।
साधक पाठ पढ़े नित जोई,
मनोकामना पूरण होई ।
धूप दीप नैवेद्य मिठाई,
रोट लंगोट को भोग लगाई ।
दोहा –
रतन अमोलक जगत में,
योग युक्ति है मीत ।
नर से नारायण बने,
अटल योग की रीत ।
योग विहंगम पंथ को,
आदि नाथ शिव कीन्ह ।
शिष्य प्रशिष्य परम्परा,
सब मानव को दीन्ह ।
प्रातः काल स्नान कर,
सिद्ध चालीसा ज्ञान ।
पढ़ें सुने नर पावही,
उत्तम पद निर्वाण ।
चौरासी सिद्धों का महत्व
नाथ परंपरा में मान्यता है कि भगवान शिव ने सबसे पहले योग की परंपरा आदिनाथ के रूप में शुरू की थी। आदिनाथ से मत्स्येंद्रनाथ और मत्स्येंद्रनाथ से गुरु गोरक्षनाथ को योग की गूढ़ विद्याएँ मिलीं। इन्हीं गोरखनाथ जी ने चौरासी सिद्धों को योग का उपदेश दिया।
इन चौरासी सिद्धों ने अपने कठोर तप और योग साधना से अष्ट सिद्धियों (आठ प्रमुख योगिक शक्तियां) और नव निधियों (नौ प्रकार के दिव्य खजाने) को प्राप्त किया। इन अद्भुत सिद्धियों के कारण वे काल पर विजय पाने और जनमानस के कल्याण के लिए कार्य करने में समर्थ हुए।
चौरासी सिद्धों की सूची
चौरासीसिद्ध चालीसा में नामित कुछ प्रसिद्ध सिद्ध हैं:
- मत्स्येन्द्रनाथ
- गोरखनाथ
- जालंधरनाथ
- कनिफनाथ (कानीपा)
- चर्पटीनाथ
- भर्तृहरि
- रेवननाथ
चौरासी सिद्ध चालीसा का पाठ कैसे करें?
चौरासीसिद्ध चालीसा का पाठ कुछ इस प्रकार किया जाता है:
- आवाहन: गुरु गोरखनाथ और चौरासी सिद्धों का आह्वान करते हुए उनका आशीर्वाद मांगा जाए।
- दोहा: चालीसा का प्रारंभ एक दोहे से करें ।
- चौपाइयाँ: चालीसा की चौपाइयों में प्रत्येक सिद्ध के नाम और उनकी विशेषता का गुणगान करें।
- दोहा: चालीसा का अंतिम दोहा एक बार फिर सिद्धों से विनती और आशीर्वाद की प्रार्थना पर बल देता है।
अथ चौरासी सिद्ध चालीसा पाठ के लाभ
- योगिक शक्तियों की प्राप्ति: इस चालीसा को लगातार भक्ति-भाव के साथ पढ़ने से साधक में सिद्धियों की प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: चौरासी सिद्ध चालीसा हमारी आध्यात्मिक यात्रा को सरल बनाती है और मोक्ष प्राप्ति की ओर मार्गदर्शन देती है।
- सांसारिक कष्टों से मुक्ति: इस चालीसा के पाठ से सांसारिक कष्ट कम होते हैं और जीवन में शांति आती है।
- इच्छाओं की पूर्ति: माना जाता है कि चौरासी सिद्ध चालीसा का नियमित पाठ करने से जातक की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
अथ चौरासी सिद्ध चालीसा पाठ विधि
- इस चालीसा को किसी भी शुभ समय और स्वच्छ स्थान पर किया जा सकता है।
- स्नान करने के बाद भगवान शिव और गुरु गोरक्षनाथ के चित्र के सामने बैठें।
- दीप प्रज्वलित करें, धूप-अगरबत्ती लगाएँ और प्रसाद रखें।
- ध्यान लगाकर चौरासी सिद्ध चालीसा का पाठ करें।
- पाठ समाप्ति के बाद क्षमा याचना और आरती की जा सकती है।
भक्तों के अनुभव
अनेक साधकों ने चौरासी सिद्ध चालीसा को चमत्कारी बताया है। कई लोगों के जीवन में इस चालीसा के करने से व्यापार में बढ़ोतरी, स्वास्थ्य में सुधार, और रिश्तों में मधुरता जैसे असाधारण बदलाव आए हैं।
उपासना में महत्त्वपूर्ण सामग्री
चौरासी सिद्धों की उपासना और चालीसा पाठ के लिए आवश्यक कुछ सामग्रियां इस प्रकार हैं:
- गुरु गोरक्षनाथ की तस्वीर या मूर्ति
- भगवान शिव की तस्वीर या शिवलिंग
- धूप, अगरबत्ती
- दीपक (तेल या घी का)
- फूल
- रोली, मौली
- प्रसाद (फल, मिठाई, इत्यादि)
- शुद्ध जल
- आसन या स्वच्छ चटाई
अथ चौरासी सिद्ध चालीसा का महत्व
- भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का परिचय: यह चालीसा हमें गुरु-शिष्य परंपरा, योग की शक्ति, साधना के मूल्यों, और भारत की गौरवशाली आध्यात्मिक विरासत से परिचित कराती है।
- प्रेरणास्त्रोत: चौरासी सिद्धों का जीवन हमें साधना के पथ पर अडिग रहने की प्रेरणा देता है।
- समस्याओं का समाधान: इस चालीसा को सच्ची श्रद्धा से पढ़ने से व्यक्ति को कई प्रकार के संकटों और जीवन की बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
चौरासी सिद्ध चालीसा के विषय में कुछ सामान्य प्रश्न और उनके उत्तर नीचे दिए गए हैं:
- प्रश्न: इस चालीसा का पाठ कितनी बार करना चाहिए? उत्तर: आप अथ चौरासी सिद्ध चालीसा का पाठ जितनी बार चाहें कर सकते हैं। इसे सुबह, शाम, या जब भी आपके पास समय हो, तब किया जा सकता है। सर्वोत्तम परिणामों के लिए, इसे प्रतिदिन एक ही समय पर करने का प्रयास करें।
- प्रश्न: क्या इस चालीसा को कोई भी पढ़ सकता है? उत्तर: यह चालीसा धर्म, जाति या लिंग के बंधन से परे है। इसे कोई भी पढ़ सकता है और लाभ प्राप्त कर सकता है।
- प्रश्न: गोरखनाथ मठ कहाँ है? उत्तर: गोरखपुर (उत्तरप्रदेश) में स्थित गोरखनाथ मठ, नाथ परम्परा का प्रमुख केंद्र है। यह मठ गुरु गोरक्षनाथ से जुड़ा हुआ है।
निष्कर्ष
दोस्तों, अथ चौरासी सिद्ध चालीसा नाथ परंपरा की एक अनमोल आध्यात्मिक धरोहर है। यदि आप सिद्धियों की प्राप्ति या आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं, तो आपको अपने दैनिक अभ्यास में इसे ज़रूर शामिल करना चाहिए। याद रखें, सिद्धि इस चालीसा के पाठ में ही नहीं, इसमें निहित भाव और निष्ठा में भी है!
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