दुर्गा चालीसा(Durga Chalisa): शक्ति, भक्ति, और विजय का मार्ग

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जय-जय दुर्गे, मैया! जय-जय दुर्गे, मां! मातु दुर्गा, शक्ति का असीम स्रोत हैं। जिन भक्तों पर उनकी कृपा बरसती है, उनका जीवन कभी निराशा के अंधकार में नहीं डूबता। दुर्गा चालीसा माता दुर्गा की स्तुति करने वाला एक शक्तिशाली भक्ति गीत है, और इसके पाठ से मां भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। आइए, इस चालीसा के बारे जानते हैं, ताकि आप माता के आशीर्वाद से अपने जीवन की समस्याओं को दूर कर सकें।

दुर्गा चालीसा का महत्व

  • मन में शांति देता है: आज के दौर में, तनाव और मानसिक अशांति आम बात हो गई है। ऐसे में, दुर्गा चालीसा का पाठ मन को शांति प्रदान करता है।
  • संकटों को दूर भगाता है: माँ दुर्गा का स्वरूप रौद्र है। ऐसा माना जाता है कि दुर्गा चालीसा के पाठ से शत्रु और सारे अशुभ प्रभाव दूर भागते हैं, और भक्त पर माता का संरक्षण बना रहता है।
  • मनोकामनाएं पूरी करता है: अगर आप किसी मनोकामना को लेकर चिंतित हैं, तो माँ दुर्गा की शरण लीजिए। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से माता अपने भक्तों की जायज मनोकामनाएं अवश्य पूरी करती हैं।

दुर्गा चालीसा पाठ विधि

  1. शुद्धता महत्वपूर्ण है: दुर्गा चालीसा का पाठ करने से पहले, स्नान कर के स्वच्छ वस्त्र पहनने चाहिए।
  2. पूजा स्थल स्थापित करें: अपने घर के मंदिर या किसी अन्य साफ स्थान पर माता दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
  3. दीपक एवं अगरबत्ती: माता के समक्ष दीपक जलाएं और अगरबत्ती या धूप जलाएं।
  4. माता को भोग लगाएं: दुर्गा माँ को फल-फूल और मिष्ठान अर्पित करें।
  5. पाठ आरंभ करें: श्रद्धा और विश्वास के साथ दुर्गा चालीसा का पाठ करना शुरू करें।

दुर्गा चालीसा पाठ

॥ चौपाई ॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो अम्बे दुःख हरनी॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूँ लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लय कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि-मुनिन उबारा॥
धरा रूप नरसिंह को अम्बा।
प्रगट भईं फाड़कर खम्बा॥

रक्षा कर प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर-खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजे॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगर कोटि में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब-जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावै।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप को मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे।
मोह मदादिक सब विनशावै॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला॥

जब लगि जियउं दया फल पाऊं।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो नित गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

श्री दुर्गा चालीसा पाठ का उत्तम समय

दुर्गा चालीसा किसी भी दिन पढ़ी जा सकती है, परंतु नवरात्रि के पावन दिनों में इस चालीसा का पाठ करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। अगर आप शत्रुओं से या बुरी शक्तियों से घिरे हुए हैं, तो दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य कीजिए।

दुर्गा चालीसा की उत्पत्ति का इतिहास

दुर्गा चालीसा की रचना के पीछे एक रोचक कथा है। कहा जाता है कि बहुत समय पहले एक अहंकारी ब्राह्मण था। वह ब्राह्मण हमेशा माता दुर्गा का अपमान करता था। एक दिन माँ दुर्गा एक कन्या का रूप लेकर उसके पास आईं और ब्राह्मण से दुर्गा चालीसा पढ़ने के लिए कहा। ब्राह्मण यह सुनकर क्रोधित हो गया, परंतु फिर भी दुर्गा चालीसा का पाठ किया। माँ दुर्गा ने उसके गलत उच्चारण के बावजूद उस ब्राह्मण की रक्षा की। उस ब्राह्मण को अपनी गलती का एहसास हुआ और उसने माता से क्षमा मांगी।

दुर्गा चालीसा के कुछ चुनिंदा दोहे/चौपाई और उनका अर्थ

  • दोहा: नमो नमो दुर्गे सुख करनी ।। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥

अर्थ: माँ दुर्गा ही हैं जो सुख देती हैं और दुख दूर करती हैं। मैं माता दुर्गा के चरणों में नमन करता हूं।

  • चौपाई: मैया मैं तो चरणन की दासी ।। देखत जनम न होहिं अब नासी ॥

अर्थ: हे माँ! मैं तो आपकी दासी हूँ। माँ कृपया मुझ पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें, जिससे मेरा कभी पतन न हो।

माँ दुर्गा से जुड़ी अन्य रचनाएं

  • दुर्गा सप्तशती: यह संस्कृत का ग्रंथ माँ दुर्गा की शक्ति और देवी के विभिन्न स्वरूपों का प्रतीक है।
  • दुर्गा कवच: यह एक शक्तिशाली मंत्र है, जिसका जाप करने से माता दुर्गा का संरक्षण प्राप्त होता है।
  • देवी महात्म्य: यह हिन्दू धर्म के मार्कंडेय पुराण का एक भाग है जिसमें देवी दुर्गा की उत्पत्ति और महिषासुर-वध की कथा वर्णित है।

भक्तों के अनुभव

बेशक माँ दुर्गा शक्ति की देवी हैं, लेकिन वह अपने भक्तों के लिए करुणा की सागर हैं। ऐसे कई भक्त हैं जिन्होंने दुर्गा चालीसा की अद्भुत शक्ति का अनुभव किया है। एक भक्त ने बताया कि जब वे जीवन में बड़ी दुविधा में थे, तब माता की कृपा और दुर्गा चालीसा की शरण में आकर जीवन के सारे कष्ट दूर हो गए।

माँ दुर्गा के नौ रूप:

नवरात्रि के नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें से प्रत्येक रूप उनकी विशिष्ट शक्ति और महत्व को दर्शाता है।

1. शैलपुत्री:
हिमालय पर्वत राज की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री है। नवरात्रि के प्रथम दिन इनकी पूजा की जाती है।

2. ब्रह्मचारिणी:
ब्रह्म का अर्थ है कठोर तपस्या। भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी, इसलिए माता के इस रूप को ब्रह्मचारिणी कहा गया है।

3. चंद्रघंटा:
देवी के इस रूप में उनके मस्तक पर चंद्र आकार का तिलक होता है इसलिए उनके इस रूप को चंद्रघंटा कहा गया है।

4. कुष्मांडा:
मान्यता है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति माता कुष्मांडा के उदर से हुई है। नवरात्रे के चौथे दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है।

5. स्कंदमाता:
स्कंद (कार्तिकेय) देवता माँ दुर्गा के पुत्र हैं। इस रूप में माँ दुर्गा अपने पुत्र स्कंद को गोद में लिए हुए हैं।

6. कात्यायनी:
ऋषि कात्यायन ने माँ दुर्गा की कठोर तपस्या की थी, जिसके फलस्वरूप माँ ने उन्हें पुत्री रूप में जन्म दिया। इसलिए माता के इस रूप को कात्यायनी कहा गया है।

7. कालरात्रि:
माँ दुर्गा का यह रूप अत्यंत भयानक है। इस रूप में माँ दुर्गा राक्षसों का संहार करती हैं।

8. महागौरी:
माँ दुर्गा का यह रूप अत्यंत शांत और सुंदर है। इस रूप में माँ दुर्गा सफेद वस्त्र धारण करती हैं।

9. सिद्धिदात्री:
माँ दुर्गा का यह रूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है। नवरात्रे के नौवें दिन इनकी पूजा-आराधना की जाती है।

माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने से भक्तों को विभिन्न लाभ प्राप्त होते हैं, जैसे:

  • शक्ति और साहस में वृद्धि
  • पापों का नाश
  • मनोकामनाओं की पूर्ति
  • सुख-समृद्धि और शांति

आइए, माँ दुर्गा से प्रार्थना करें…

हे माँ दुर्गा! हम सब आपके ही बच्चे हैं! हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें, और जीवन की सारी समस्याओं से हमें मुक्त करें। जय माँ दुर्गा!


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