मां शैलपुत्री (Maa Shailputri): नवरात्रि की प्रथम दुर्गा से जानिए कथा, महत्व और पूजा विधि

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मां शैलपुत्री: नवदुर्गा पूजा का शुभारंभ

नवरात्रि के नौ पवित्र दिनों के दौरान, देवी दुर्गा के नौ शक्तिशाली रूपों की पूजा की जाती है। क्या आप इस बात से परिचित हैं कि प्रथम देवी हैं शैलपुत्री? आइए, हम उनके स्वरूप, उनकी पौराणिक कथा और उनकी शक्ति के बारे में गहराई से जानने का प्रयास करें।

कौन हैं मां शैलपुत्री?

मां शैलपुत्री, पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। शैल का अर्थ होता है पर्वत, इसी कारण उन्हें शैलपुत्री नाम से जाना जाता है। देवी दुर्गा के इस रूप को मां पार्वती के पुनर्जन्म के रूप में भी देखा जाता है, जो दक्ष प्रजापति की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी के रूप में सती के नाम से विख्यात थीं।

मां शैलपुत्री का जन्म और रूप

मां शैलपुत्री का जन्म देवराज हिमालय और रानी मैना के घर हुआ था। ‘शैल’ का अर्थ पर्वत है, इसी कारण उन्हें शैलपुत्री नाम दिया गया। मां शैलपुत्री का स्वरूप अत्यंत मनमोहक और शांत है। वे सफेद वस्त्र धारण करती हैं और बैल पर सवार होती हैं। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल है।

मां शैलपुत्री के नाम

मां शैलपुत्री को विभिन्न नामों से जाना जाता है, जिनमें शामिल हैं:

  • पार्वती
  • हेमावती
  • अंबा
  • दुर्गा
  • भवानी
  • शक्ति

मां शैलपुत्री की कथा

एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को नहीं। सती, जो राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी थीं, अपने पिता के यज्ञ में जाना चाहती थीं। भगवान शिव के मना करने के बावजूद, वे यज्ञ में शामिल होने के लिए दृढ़ थीं।

यज्ञ में, राजा दक्ष ने भगवान शिव का बार-बार अपमान किया। माता सती यह अपमान सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में स्वयं को समर्पित कर दिया। भगवान शिव के क्रोध से, वीरभद्र नामक एक भयंकर शक्तिशाली योद्धा प्रकट हुआ और उसने यज्ञ को नष्ट कर दिया।

माता सती के शरीर का त्याग करने के बाद, उनका आत्मा हिमालय और रानी मैना के घर पुत्री के रूप में अवतरित हुआ। इस जन्म में, उन्हें पार्वती के नाम से जाना जाता था। उन्होंने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी स्वीकार किया।

मां शैलपुत्री स्वरूप का महत्व:

1. शक्ति और साहस का प्रतीक:

मां शैलपुत्री, देवी दुर्गा का प्रथम रूप हैं और वे शक्ति और साहस का प्रतीक हैं। वे भक्तों को आंतरिक शक्ति प्रदान करती हैं और उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती हैं।

2. शुद्धता और सौभाग्य:

मां शैलपुत्री, शुद्धता और सौभाग्य का प्रतीक हैं। उनकी पूजा से भक्तों के जीवन में शुद्धता और सौभाग्य का आगमन होता है।

3. कष्टों का नाश:

मां शैलपुत्री, भक्तों के सभी पापों और कष्टों को दूर करती हैं। उनकी पूजा से भक्तों को जीवन में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।

4. मनोकामनाओं की पूर्ति:

मां शैलपुत्री, भक्तों की मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली देवी हैं। उनकी पूजा से भक्तों को अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति प्राप्त होती है।

5. नवरात्रि का शुभारंभ:

मां शैलपुत्री, नवरात्रि के पहले दिन पूजी जाने वाली देवी हैं। उनकी पूजा से नवरात्रि का शुभारंभ होता है।

मां शैलपुत्री की पूजा विधि

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि-विधान से की जाती है।

पूजा सामग्री:

  • कलश
  • मां शैलपुत्री की मूर्ति
  • दीप
  • धूप
  • चंदन
  • रोली
  • अक्षत
  • फूल
  • फल
  • मिठाई
  • नैवेद्य

पूजा विधि:

  1. सर्वप्रथम, कलश स्थापना करें।
  2. मां शैलपुत्री की मूर्ति को स्नान कराएं और उन्हें वस्त्र धारण कराएं।
  3. उन्हें दीप, धूप, चंदन, रोली, अक्षत, फूल, फल, मिठाई और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. मां शैलपुत्री मंत्र और आरती का पाठ करें।
  5. भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए मां शैलपुत्री से प्रार्थना कर सकते हैं।

मां शैलपुत्री मंत्र

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

माँ शैलपुत्री और मूलाधार चक्र

आइए, मां शैलपुत्री से संबंधित कुछ अतिरिक्त और महत्वपूर्ण पहलुओं पर नज़र डालें:

मूलाधार चक्र और शैलपुत्री

  • मां शैलपुत्री का संबंध मूलाधार चक्र से माना जाता है। यह चक्र हमारी बुनियादी प्रवृत्ति, सुरक्षा और अस्तित्व से जुड़ा होता है।
  • मां शैलपुत्री की पूजा से इस चक्र को मजबूती और संतुलन मिलता है, जिससे हम जीवन में स्थिरता और सुरक्षा की भावना प्राप्त कर सकते हैं।

प्रतीकवाद

  • वृषभ (बैल): मां शैलपुत्री की सवारी, वृषभ, शक्ति, दृढ़ संकल्प और स्थिरता का प्रतीक है।
  • त्रिशूल: यह प्रकृति के तीन गुणों – सत्व (शुद्धता), रजस (जुनून), और तमस (अज्ञानता) – पर काबू पाने की शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
  • कमल: यह पवित्रता, आध्यात्मिक विकास और जीवन की नकारात्मकता से ऊपर उठने का प्रतीक है।
  • चंद्रमा: मां शैलपुत्री के मस्तक पर विराजमान चंद्रमा स्त्री ऊर्जा, भावनाओं और मनोवृति का प्रतिनिधित्व करता है।

मां शैलपुत्री की आरती:

शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार। 

शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी। 

पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे। 

ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू। 

सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी। 

उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो। 

घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के। 

श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं। 

जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे। 

मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।

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मां शैलपुत्री को समर्पित अन्य त्यौहार

  • कुमाऊं का ‘महिषासुरमर्दिनी’ उत्सव:
    • यह त्यौहार नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है।
    • इसमें मां शैलपुत्री (दुर्गा) द्वारा महिषासुर (असुर) के वध का नाटकीय प्रदर्शन होता है।
  • हिमाचल प्रदेश का ‘शैलपुत्री मेला’:
    • यह मेला मां शैलपुत्री के मंदिर (मंडी जिला) में नवरात्रि के दौरान आयोजित होता है।
    • इस मेले में भक्त दूर-दूर से मां शैलपुत्री के दर्शन करने आते हैं।
  • महाराष्ट्र का ‘शैलपुत्री पूजन:
    • यह पूजा नवरात्रि के पहले दिन घरों में की जाती है।
    • इस पूजा में मां शैलपुत्री की मूर्ति स्थापित करके विधि-विधान से पूजा की जाती है।
  • अन्य राज्यों में:
    • मां शैलपुत्री को समर्पित मंदिरों में भी नवरात्रि के दौरान विशेष पूजा और उत्सव आयोजित किए जाते हैं।

प्रिय भक्तों, नवरात्रि का हर दिन एक नई देवी और नई शक्ति के साथ आता है। माता शैलपुत्री, हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्रदान करती हैं। आइए हम सब शुद्ध मन से मां शैलपुत्री की उपासना कर उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को धन्य करें।


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